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Showing posts from November, 2020
 

रामचरितमानस के उत्तरकांड में गरुड़जी कागभुशुण्डि जी से कहते हैं कि, आप मुझ पर कृपावान हैं, और मुझे अपना सेवक मानते हैं, तो कृपापूर्वक मेरे सात प्रश्नों के उत्तर दीजिए। गरुड़ जी प्रश्न करते हैं- प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब तें दुर्लभ कवन सरीरा। बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोइ संछेपहिं कहहु बिचारी। संत असंत मरम तुम जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु। कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला। मानस रोग कहहु समुझाई । तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई ।। गरुड़ प्रश्न करते हैं कि हे नाथ! सबसे दुर्लभ शरीर कौन-सा है। कौन सबसे बड़ा दुःख है। कौन सबसे बड़ा सुख है। साधु और असाधु जन का स्वभाव कैसा होता है। वेदों में बताया गया सबसे बड़ा पाप कौन-सा है। इसके बाद वे सातवें प्रश्न के संबंध में कहते हैं कि मानस रोग समझाकर बतलाएँ, क्योंकि आप सर्वज्ञ हैं। गरुड़ के प्रश्न के उत्तर में कागभुशुंडि कहते हैं कि मनुष्य का शरीर दुर्लभ और श्रेष्ठ है, क्योंकि इस शरीर के माध्यम से ही ज्ञान, वैराग्य, स्वर्ग, नरक, भक्ति आदि की प्राप्ति होती है। वे कहते हैं कि दरिद्र के समान संसार में कोई दुःख नहीं है और संतों (सज्जनों) के मिलन के समान कोई सुख नहीं है। मन, वाणी और कर्म से परोपकार करना ही संतों (साधुजनों) का स्वभाव होता है। किसी स्वार्थ के बिना, अकारण ही दूसरों का अपकार करने वाले दुष्ट जन होते हैं। वेदों में विदित अहिंसा ही परम धर्म और पुण्य है, और दूसरे की निंदा करने के समान कोई पाप नहीं होता है। गरुड़ के द्वारा पूछे गए सातवें प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत विस्तार के साथ कागभुशुंडि द्वारा दिया जाता है। सातवें और अंतिम प्रश्न के उत्तर में प्रायः वे सभी कारण निहित हैं, जो अनेक प्रकार के दुःखों का कारण बनते हैं। इस कारण बाबा तुलसी मानस रोगों का विस्तार से वर्णन करते हैं। सुनहु तात अब मानस रोगा।जिन्ह तें दुख पावहिं सब लोगा। मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह तें पुनि उपजहिं बहु सूला। काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा। प्रीति करहिं जौ तीनिउ भाई । उपजइ सन्यपात दुखदाई। विषय मनोरथ दुर्गम नाना । ते सब सूल नाम को जाना। कागभुशुंडि कहते हैं कि मानस रोगों के बारे में सुनिए, जिनके कारण सभी लोग दुःख पाते हैं। सारी मानसिक व्याधियों का मूल मोह है। इसके कारण ही अनेक प्रकार के मनोरोग उत्पन्न होते हैं। शरीर में विकार उत्पन्न करने वाले वात, कफ और पित्त की भाँति क्रमशः काम, अपार लोभ और क्रोध हैं। जिस प्रकार पित्त के बढ़ने से छाती में जलन होने लगती है, उसी प्रकार क्रोध भी जलाता है। यदि ये तीनों मनोविकार मिल जाएँ, तो कष्टकारी सन्निपात की भाँति रोग लग जाता है। अनेक प्रकार की विषय-वासना रूपी मनोकांक्षाएँ ही वे अनंत शूल हैं, जिनके नाम इतने ज्यादा हैं, कि उन सबको जानना भी बहुत कठिन है। बाबा तुलसी इस प्रसंग में अनेक प्रकार के मानस रोगों, जैसे- ममता, ईर्ष्या, हर्ष, विषाद, जलन, दुष्टता, मन की कुटिलता, अहंकार, दंभ, कपट, मद, मान, तृष्णा, मात्सर्य (डाह) और अविवेक आदि का वर्णन करते हैं और शारीरिक रोगों के साथ इनकी तुलना करते हुए इन मनोरोगों की विकरालता को स्पष्ट करते हैं। यहाँ मनोरोगों की तुलना शारीरिक व्याधियों से इस प्रकार और इतने सटीक ढंग से की गई है, कि किसी भी शारीरिक व्याधि की तीक्ष्णता और जटिलता से मनोरोग की तीक्ष्णता और जटिलता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। शरीर का रोग प्रत्यक्ष होता है और शरीर में परिलक्षित होने वाले उसके लक्षणों को देखकर जहाँ एक ओर उपचार की प्रक्रिया को शुरू किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर व्याधिग्रस्त व्यक्ति को देखकर अन्य लोग उस रोग से बचने की सीख भी ले सकते हैं। सामान्यतः मनोरोग प्रत्यक्ष परिलक्षित नहीं होता, और मनोरोगी भी स्वयं को व्याधिग्रस्त नहीं मानता है। इस कारण से बाबा तुलसी ने मनोरोगों की तुलना शारीरिक रोगों से करके एकदम अलग तरीके से सीख देने का कार्य किया है। कागभुशुंडि कहते हैं कि एक बीमारी-मात्र से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और यहाँ तो अनेक असाध्य रोग हैं। मनोरोगों के लिए नियम, धर्म, आचरण, तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान आदि अनेक औषधियाँ हैं, किंतु ये रोग इन औषधियों से भी नहीं जाते हैं। इस प्रकार संसार के सभी जीव रोगी हैं। शोक, हर्ष, भय, प्रीति और वियोग से दुःख की अधिकता हो जाती है। इन तमाम मानस रोगों को विरले ही जान पाते हैं। जानने के बाद ये रोग कुछ कम तो होते हैं, मगर विषय-वासना रूपी कुपथ्य पाकर ये साधारण मनुष्य तो क्या, मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो जाते हैं। मनोरोगों की विकरालता का वर्णन करने के उपरांत इन रोगों के उपचार का वर्णन भी होता है। कागभुशुंडि के माध्यम से तुलसीदास कहते हैं कि सद्गुरु रूपी वैद्य के वचनों पर भरोसा करते हुए विषयों की आशा को त्यागकर संयम का पालन करने पर श्रीराम की कृपा से ये समस्त मनोरोग नष्ट हो जाते हैं। रघुपति भगति सजीवनि मूरी।अनूपान श्रद्धा मति पूरी।। इन मनोरोगों के उपचार के लिए श्रीराम की भक्ति संजीवनी जड़ की तरह है। श्रीराम की भक्ति को श्रद्धा से युक्त बुद्धि के अनुपात में निश्चित मात्रा के साथ ग्रहण करके मनोरोगों का शमन किया जा सकता है। यहाँ तुलसीदास ने भक्ति, श्रद्धा और मति के निश्चित अनुपात का ऐसा वैज्ञानिक-तर्कसम्मत उल्लेख किया है, जिसे जान-समझकर अनेक लोगों ने मानस को अपने जीवन का आधार बनाया और मनोरोगों से मुक्त होकर जीवन को सुखद और सुंदर बनाया। यहाँ पर श्रीराम की भक्ति से आशय कर्मकांडों को कठिन और कष्टप्रद तरीके से निभाने, पूजा-पद्धतियों का कड़ाई के साथ पालन करने और इतना सब करते हुए जीवन को जटिल बना लेने से नहीं है। इसी प्रकार श्रद्धा भी अंधश्रद्धा नहीं है। भक्ति और श्रद्धा को संयमित, नियंत्रित और सही दिशा में संचालित करने हेतु मति है। मति को नियंत्रित करने हेतु श्रद्धा और भक्ति है। इन तीनों के सही और संतुलित व्यवहार से श्रीराम का वह स्वरूप प्रकट होता है, जिसमें मर्यादा, नैतिकता और आदर्श है। जिसमें लिप्सा-लालसा नहीं, त्याग और समर्पण का भाव होता है। जिसमें विखंडन की नहीं, संगठन की; सबको साथ लेकर चलने की भावना निहित होती है। जिसमें सभी के लिए करुणा, दया, ममता, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य जैसे उदात्त गुण परिलक्षित होते हैं। श्रद्धा, भक्ति और मति का संगठन जब श्रीराम के इस स्वरूप को जीवन में उतारने का माध्यम बन जाता है, तब असंख्य मनोरोग दूर हो जाते हैं। स्वयं का जीवन सुखद, सुंदर, सरल और सहज हो जाता है। जब अंतर्जगत में, मन में रामराज्य स्थापित हो जाता है, तब बाह्य जगत के संताप प्रभावित नहीं कर पाते हैं। इसी भाव को लेकर, आत्मसात् करके विसंगतियों, विकृतियों और जीवन के संकटों से जूझने की सामर्थ्य अनगिनत लोगों को तुलसी के मानस से मिलती रही है। यह क्रम आज का नहीं, सैकड़ों वर्षों का है। यह क्रम देश की सीमाओं के भीतर का ही नहीं, वरन् देश से बाहर कभी मजदूर बनकर, तो कभी प्रवासी बनकर जाने वाले लोगों के लिए भी रहा है। सैकड़ों वर्षों से लगाकर वर्तमान तक अनेक देशों में रहने वाले लोगों के लिए तुलसी का मानस इसी कारण पथ-प्रदर्शक बनता है, सहारा बनता है। आज के जीवन की सबसे जटिल समस्या ऐसे मनोरोगों की है, मनोविकृतियों की है, जिनका उपचार अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के पास भी उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में तुलसीदास का मानस व्यक्ति से लगाकर समाज तक, सभी को सही दिशा दिखाने, जीवन को सन्मार्ग में चलाने की सीख देने की सामर्थ्य रखता है। #वनिता #पंजाब

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गोपाष्टमी 2020 तिथि मुहूर्त व व्रत कथा23 नवम्बर 2020Gopashtami 2020 – गोपाष्टमी 2020 तिथि मुहूर्त व व्रत कथागोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तिथि तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। साल 2020 में गोपाष्टमी पूजन 22 नवंबर को है। गोपाष्टमी पर बाल वनिता महिला आश्रम को बनाएं अपनी लाइफ का और देश के जाने-माने ज्योतिषियों पायें अपनी मंजिल का सही रास्ता। अभी बात करने के लिये यहां क्लिक करें। हिन्दू धर्म में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्यूंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिती में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं। गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विध्दान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं। शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऎसा करने से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृध्दि होती है। गोपाष्टमी की पौराणिक कथा पंडितजी का कहना है कि एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं। गोपाष्टमी के अवसर पर गऊशालाओं व गाय पालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना की जाती है इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है। महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं। गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। गोपाष्टमी पर गऊओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है। कईं स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी सत्संग संपन्न होते हैं। गोपाष्टमी पर्व के उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारे में श्रद्धालुओं ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं। वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर शहर के कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है। मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं। इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।गो सेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है। गोपाष्टमी 2020 तिथि व मुहूर्तगोपाष्टमी - 22 नवंबर 2020गोपाष्टमी तिथि प्रारंभ - रात्रि 21 बजकर 48 मिनट (21 नवंबर 2020) सेगोपाष्टमी तिथि अंत - रात्रि 22 बजकर 51 मिनट (22 नवंबर 2020) तक वनिता पंजाब🌹🌹🙏🙏🌹🌹🇮🇳

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ॐ श्री परमात्मने नमः* *भक्तिमें विरहके समान कोई चीज नहीं । दूसरेके दुःखसे द्रवित होनेपर उस द्रवित हृदयमें जिज्ञासा, विरह आदि स्वतः पैदा हो जायेंगे ।* *जैसे औषधालयकी सब दवाएँ हमारे कामकी नहीं होतीं, ऐसे ही शास्‍त्रोंकी सब बातें सबके लिये नहीं होतीं । जो बात अपने कामकी है, उसे ले लो । आपको अपनी प्यास मिटानी है ।* *समुद्रमेंसे कोई राई कैसे निकाल सकता है ? नहीं निकाल सकता । पर संसारभरके ग्रन्थोंमेंसे भगवान्‌ने ‘गीता’ निकालकर हमें दे दी‒यह उनकी कितनी कृपा है ! फिर भी हम चेत न करें तो भगवान्‌का क्या दोष है ?* *आजकल विवेकमार्गी बहुत थोड़े हैं, ज्यादा विश्‍वासमार्गी ही हैं । जबतक जान नहीं जायेंगे, तबतक नहीं मानेंगे‒यह विवेकमार्ग है । विश्‍वासमार्गमें पहले मानकर फिर जानते हैं ।* *‘वासुदेवः सर्वम्’ में वाग्विवाद, मतभेद नहीं है । ज्ञानमें मतभेद होता है, प्रेममें मतभेद नहीं होता । प्रेम मतभेदको खा जाता है । मतमें भेद होता है, प्रेममें भेद नहीं होता । प्रेमाद्वैत बहुत विलक्षण चीज है ।* *जबतक संसारकी सत्ता रहेगी, तबतक भेद नहीं मिटेगा । जबतक संसार और परमात्मा, त्याज्य और ग्राह्य‒ये दो रहेंगे, तबतक प्रेम नहीं हो सकता । जबतक यह वृत्ति रहेगी कि मनको संसारसे हटायें और परमात्मामें लगायें, तबतक मनका सर्वथा निरोध नहीं होगा । जबतक दोका विभाग रहेगा, तबतक मनका निरोध बड़ा कठिन है । पर जब दूसरा कोई है ही नहीं, तब मन कहाँ जायगा ? जब एक प्रभुके सिवाय कुछ है ही नहीं, तो फिर मनको कहाँसे हटायेंगे और कहाँ लगायेंगे ? दो चीजें नहीं रहेंगी तो निरन्तर भजन ही होगा, भजनके सिवाय क्या होगा ? विवेकमार्गमें नित्य-अनित्य, सत्-असत्, जड़-चेतन दो चीजें रहेंगी ।* *वस्तु पासमें रखना दोष नहीं है, पर उसका सहारा नहीं होना चाहिये ।ॐ श्री परमात्मने नमः* *भक्तिमें विरहके समान कोई चीज नहीं । दूसरेके दुःखसे द्रवित होनेपर उस द्रवित हृदयमें जिज्ञासा, विरह आदि स्वतः पैदा हो जायेंगे ।* *जैसे औषधालयकी सब दवाएँ हमारे कामकी नहीं होतीं, ऐसे ही शास्‍त्रोंकी सब बातें सबके लिये नहीं होतीं । जो बात अपने कामकी है, उसे ले लो । आपको अपनी प्यास मिटानी है ।* *समुद्रमेंसे कोई राई कैसे निकाल सकता है ? नहीं निकाल सकता । पर संसारभरके ग्रन्थोंमेंसे भगवान्‌ने ‘गीता’ निकालकर हमें दे दी‒यह उनकी कितनी कृपा है ! फिर भी हम चेत न करें तो भगवान्‌का क्या दोष है ?* *आजकल विवेकमार्गी बहुत थोड़े हैं, ज्यादा विश्‍वासमार्गी ही हैं । जबतक जान नहीं जायेंगे, तबतक नहीं मानेंगे‒यह विवेकमार्ग है । विश्‍वासमार्गमें पहले मानकर फिर जानते हैं ।* *‘वासुदेवः सर्वम्’ में वाग्विवाद, मतभेद नहीं है । ज्ञानमें मतभेद होता है, प्रेममें मतभेद नहीं होता । प्रेम मतभेदको खा जाता है । मतमें भेद होता है, प्रेममें भेद नहीं होता । प्रेमाद्वैत बहुत विलक्षण चीज है ।* *जबतक संसारकी सत्ता रहेगी, तबतक भेद नहीं मिटेगा । जबतक संसार और परमात्मा, त्याज्य और ग्राह्य‒ये दो रहेंगे, तबतक प्रेम नहीं हो सकता । जबतक यह वृत्ति रहेगी कि मनको संसारसे हटायें और परमात्मामें लगायें, तबतक मनका सर्वथा निरोध नहीं होगा । जबतक दोका विभाग रहेगा, तबतक मनका निरोध बड़ा कठिन है । पर जब दूसरा कोई है ही नहीं, तब मन कहाँ जायगा ? जब एक प्रभुके सिवाय कुछ है ही नहीं, तो फिर मनको कहाँसे हटायेंगे और कहाँ लगायेंगे ? दो चीजें नहीं रहेंगी तो निरन्तर भजन ही होगा, भजनके सिवाय क्या होगा ? विवेकमार्गमें नित्य-अनित्य, सत्-असत्, जड़-चेतन दो चीजें रहेंगी ।* *वस्तु पासमें रखना दोष नहीं है, पर उसका सहारा नहीं होना चाहिये वनिता कासनियां पंजाब🌹🌹🙏🙏🌹🌹🇮🇳।

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ॐ श्री परमात्मने नमः* *भक्तिमें विरहके समान कोई चीज नहीं । दूसरेके दुःखसे द्रवित होनेपर उस द्रवित हृदयमें जिज्ञासा, विरह आदि स्वतः पैदा हो जायेंगे ।* *जैसे औषधालयकी सब दवाएँ हमारे कामकी नहीं होतीं, ऐसे ही शास्‍त्रोंकी सब बातें सबके लिये नहीं होतीं । जो बात अपने कामकी है, उसे ले लो । आपको अपनी प्यास मिटानी है ।* *समुद्रमेंसे कोई राई कैसे निकाल सकता है ? नहीं निकाल सकता । पर संसारभरके ग्रन्थोंमेंसे भगवान्‌ने ‘गीता’ निकालकर हमें दे दी‒यह उनकी कितनी कृपा है ! फिर भी हम चेत न करें तो भगवान्‌का क्या दोष है ?* *आजकल विवेकमार्गी बहुत थोड़े हैं, ज्यादा विश्‍वासमार्गी ही हैं । जबतक जान नहीं जायेंगे, तबतक नहीं मानेंगे‒यह विवेकमार्ग है । विश्‍वासमार्गमें पहले मानकर फिर जानते हैं ।* *‘वासुदेवः सर्वम्’ में वाग्विवाद, मतभेद नहीं है । ज्ञानमें मतभेद होता है, प्रेममें मतभेद नहीं होता । प्रेम मतभेदको खा जाता है । मतमें भेद होता है, प्रेममें भेद नहीं होता । प्रेमाद्वैत बहुत विलक्षण चीज है ।* *जबतक संसारकी सत्ता रहेगी, तबतक भेद नहीं मिटेगा । जबतक संसार और परमात्मा, त्याज्य और ग्राह्य‒ये दो रहेंगे, तबतक प्रेम नहीं हो सकता । जबतक यह वृत्ति रहेगी कि मनको संसारसे हटायें और परमात्मामें लगायें, तबतक मनका सर्वथा निरोध नहीं होगा । जबतक दोका विभाग रहेगा, तबतक मनका निरोध बड़ा कठिन है । पर जब दूसरा कोई है ही नहीं, तब मन कहाँ जायगा ? जब एक प्रभुके सिवाय कुछ है ही नहीं, तो फिर मनको कहाँसे हटायेंगे और कहाँ लगायेंगे ? दो चीजें नहीं रहेंगी तो निरन्तर भजन ही होगा, भजनके सिवाय क्या होगा ? विवेकमार्गमें नित्य-अनित्य, सत्-असत्, जड़-चेतन दो चीजें रहेंगी ।* *वस्तु पासमें रखना दोष नहीं है, पर उसका सहारा नहीं होना चाहिये ।

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सुषुम्ना को प्राणायाम से कैसे जगाएं, जानिए *वनिता पंजाब* 🌹🙏🙏🌹 कबहु इडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही। सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।। बहुत छोटी-सी बात है, लेकिन समझने में उम्र बीत जाती है। हमारे रोगी और निरोगी रहने का राज छिपा है हमारी श्वासों में। व्यक्ति उचित रीति से श्वास लेना भूल गया है। हम जिस तरीके और वातावरण में श्वास लेते हैं उसे हमारी इड़ा और पिंगला नाड़ी ही पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो पाती तो सुषुम्ना कैसे होगी? दोनों नाड़ियों के सक्रिय रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं सताता और यदि हम प्राणायाम के माध्यम से सुषुम्ना को सक्रिय कर लेते हैं, तो जहां हम श्वास-प्रश्वास की उचित विधि से न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनते हैं, वहीं हम सिद्ध पुरुष बनाकर ईश्वरानुभूति तक कर सकते हैं। मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एकसाथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से श्वास लेता और छोड़ता है। बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाड़ी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे श्वास प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है। प्रत्येक 1 घंटे के बाद यह 'श्वास' नासिका छिद्रों में परिवर्तित होते रहती है। शिवस्वरोदय ज्ञान के जानकार योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है। चंद्र नाड़ी से ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होती है तो शरीर को ऊष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। प्राय: मनुष्य उतनी गहरी श्वास नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी श्वास ले और छोड़ सकता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ा जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है, जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगती है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही 'योग' कहा जाता है। प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को 1 मिनट में 15 बार सांस लेनी चाहिए। इस तरह 1 घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21,600 होनी चाहिए। स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।

GST के नाम पर किसी ने आपसे वसूले ज्यादा पैसे, तो यहां करें शिकायत GST complaint helpline number अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत की है, जहां कन्ज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌷🙏🙏🌷 नई दिल्ली.अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत कर दी है, जहां कंज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। कंज्यूमर कर सकता है शिकायत आपको जीएसटी रेट कट का बेनेफिट नहींं दे रहा है तो आप इसकी शिकायत हेल्पलाइन नंबर पर कर सकते हैं। सरकार ने जीएसटी के तहत की प्रोडक्ट पर टैक्स रेट कम किए हैं और कंपनियों को कीमतें नए टैक्स स्ट्रक्चर के तहत कीमतें कम करने के लिए कहा है। अगर कंज्यूमर को लगता है कि कंपनियों या दुकानदार ने दाम नहीं घटाए हैं तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं। ये हेल्पलाइन नंबर एनएए ने नया हेल्पलाइन नंबर *1800-103-4786+1800-1200-232* ਹੈजारी किया है। यहां कन्ज्यूमर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इन नंबर पर फोन करके आप जीएसटी को लेकर कोई भी जानकारी ले सकते हैं। अपनी शिकायत का समाधान भी हेल्पलाइन पर फोन करके निकाल सकते हैं।

*कहानी* *🌻भगवान् की कृपा🌻* *एक राजा था। उसका मन्त्री भगवान का भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी। मृत्यु का समाचार सुनते ही मन्त्री बोल उठा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! यह बात राजा को बुरी तो लगी, पर वह चुप रहा।* *कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। मन्त्रीने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! राजा को गुस्सा आया, पर उसने गुस्सा पी लिया, कुछ बोला नहीं।* *एक दिन राजाके पास एक नयी तलवार बनकर आयी। राजा अपनी अंगुली से तलवार की धार देखने लगा तो धार बहुत तेज होने के कारण चट उसकी अँगुली कट गयी! मन्त्री पास में ही खड़ा था । वह बोला- भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! अब राजा के भीतर जमा गुस्सा बाहर निकला और उसने तुरन्त मन्त्री को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्न-जल ग्रहण मत करना। मन्त्री बोला - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी!* *मन्त्री अपने घर पर भी नहीं गया, साथ में कोई वस्तु भी नहीं ली और राज्य के बाहर निकल गया।* *कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिये जंगल गया , जंगल में एक हिरण का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया।उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गये वहाँ जंगल में डाकुओं का एक दल रहता था। उस दिन डाकुओं ने कालीदेवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था। संयोग से डाकुओं ने राजा को देख लिया।उन्होंने राजा को पकड़कर बाँध दिया। अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी। जब पूरी तैयारी हो गयी, तब डाकुओं के पुरोहित ने राजा से पूछा- तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा बोला- नहीं, वह मर गया। पुरोहित ने कहा कि इसका तो हृदय जला हुआ है। पुरोहित ने फिर पूछा-तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा बोला - वह भी मर चुकी है। पुरोहित ने कहा कि यह तो आधे अंग का है । अत: यह बलि के योग्य नहीं है। परन्तु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो! पुरोहित ने राजा के शरीर की जाँच की तो देखा,कि उसकी अँगुली कटी हुई है। पुरोहित बोला-अरे! यह तो अंग-भंग है, बलि के योग्य नहीं है ! छोड़ दो इसको ! डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।* *राजा अपने घर लौट आया। लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मन्त्री जहाँ भी हो, उसको तुरन्त ढूँढ़कर हमारे पास लाओ। जब तक मन्त्री वापस नहीं आयेगा, तबतक मैं अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।* *राजा के आदमियों ने मन्त्री को ढूँढ़ लिया और उससे तुरन्त राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मन्त्री ने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! मन्त्री राजा के सामने उपस्थित हो गया । राजा ने बड़े आदरपूर्वक मन्त्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए जंगल वाली घटना सुनाकर कहा कि 'पहले मैं तुम्हारी बात को समझा नहीं। अब समझमें आया कि भगवान् की मेरे पर कितनी कृपा थी! भगवान् की कृपा से अगर मेरी अँगुली न कटता तो उस दिन मेरा गला कट जाता! परन्तु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया, तब तुमने कहा कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी तो वह कृपा क्या थी, यह अभी मेरी समझ में नहीं आया !* *मन्त्री बोला-महाराज, जब आप शिकार करने गये, तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता। आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता; क्योंकि मेरा घोड़ा आपके घोड़े से कम तेज नहीं है। डाकू लोग आपके साथ मेरे को भी पकड़ लेते। आप तो अँगुली कटी होने के कारण बच जाते पर मेरा तो उस दिन गला कट ही जाता! इसलिये भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था, राज्य से बाहर था; अत: मरने से बच गया।* *अब पुन: अपनी जगह वापस आ गया हूँ। यह भगवान् की कृपा ही तो है!* *कहानी का सार यह है कि आज कल मनुष्य को सुविधा भोगने की इतनी बुरी आदत हो गयी है की थोड़ी सी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित हो जाता है ,कई बार तो भगवान के अस्तित्त्व को भी नकारने लगता है उनके लिये यही संदेश है कि उस परमात्मा ने जब हम जन्म दिया है तो हमारा योगक्षेम भी वहां करने की जिम्मेदारी उसी की है बस हमे उसके प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी जैसे एक पिता के दो पुत्र हो एक कपूत दूसरा सपूत फिर भी पिता होने के नाते उसे दोनो की ही फिक्र रहेगी परंतु किसी भी कार्य अथवा सहयोग में प्राथमिकता सपूत को ही दी जाएगीु।* *इसी प्रकार हमें उस परमात्मा के प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी सुख दुख जीवन में धूप छांया की तरह बने रहते है कभी स्थायी नही रहते हमारे अंदर उनको व्यतीत करके का धैर्य जगाना होगा और यह केवल परमात्मा की भक्ति से ही संभव है।* *वनिता पंजाब*🌷🌷🌷 *जय श्री राम जय श्री कृष्ण*वास्तु शास्त्र भवन-निर्माण का विज्ञान है। वास्तु के आधार पर बना भवन ब्रह्माण्ड से सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करता है और भवन के अंदर ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जिससे वहाँ सुख, शांति, प्रगति और सौहार्द का माहौल उत्पन्न होता है। वास्तु-शास्त्र के सिद्धांत ठोस वैज्ञानिक तथ्यों पर टिके हुए हैं, जिनका प्रयोग जीवन को सही दिशा देने और अधिकतम फल प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इन सिद्धांतों के आधार पर यदि भवन बनाया जाए और वहाँ रहते या कार्य करते समय कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखें, तो निश्चित ही बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। आइए, चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ सिद्धांतों की, जो जीवन को सुखमय और आनंदपूर्ण बनाने के लिए ज़रूरी हैं। वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों को बहुत महत्व दिया गया है। वास्तु के अनुसार मज़बूत तने वाले या ऊँचे-ऊँचे पौधे उत्तर-पूर्व, उत्तर व पूर्व दिशा में ही होने चाहिए। घर के आस-पास या घर के अन्दर कैक्टस, कीकर, बेरी या अन्य कांटेदार पौधे व दूध वाले पौधे लगाने से घर के लोग तनावग्रस्त, चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं और ऐसे पौधे स्त्रियों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। घर में तेज़ ख़ुश्बूदार पौधों को नहीं लगाना चाहिए। साथ ही घर में चौड़े पत्ते वाले पौधे, बोनसाई व नीचे की तरफ़ झुकी बेलें नहीं लगानी चाहिए। पौधे लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे सही प्रकार बढ़ें, सूखें नहीं और सूखने पर उन्हें तुरन्त बदल दें। घर में फलदार पौधे लगाना भी कभी-कभी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि जिस वर्ष फलदार पौधे पर फल कम लगें या न लगें, इस वर्ष आपको नुक़सान या परेशानी का सामना ज़्यादा करना पड़ेगा। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*💐💐🙏🙏💐💐 घर में तुलसी का पौधा उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें और तुलसी का पौधा ज़मीन से कुछ ऊँचाई पर ही लगाना उचित है। तुलसी के पौधे पर कलावा व लाल चुन्नियाँ आदि नहीं बांधनी चाहिए। त�

*कहानी* *🌻भगवान् की कृपा🌻* *एक राजा था। उसका मन्त्री भगवान का भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी। मृत्यु का समाचार सुनते ही मन्त्री बोल उठा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! यह बात राजा को बुरी तो लगी, पर वह चुप रहा।* *कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। मन्त्रीने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! राजा को गुस्सा आया, पर उसने गुस्सा पी लिया, कुछ बोला नहीं।* *एक दिन राजाके पास एक नयी तलवार बनकर आयी। राजा अपनी अंगुली से तलवार की धार देखने लगा तो धार बहुत तेज होने के कारण चट उसकी अँगुली कट गयी! मन्त्री पास में ही खड़ा था । वह बोला- भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! अब राजा के भीतर जमा गुस्सा बाहर निकला और उसने तुरन्त मन्त्री को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्न-जल ग्रहण मत करना। मन्त्री बोला - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी!* *मन्त्री अपने घर पर भी नहीं गया, साथ में कोई वस्तु भी नहीं ली और राज्य के बाहर निकल गया।* *कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिये जंगल गया , जंगल में एक हिरण का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया।उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गये वहाँ जंगल में डाकुओं का एक दल रहता था। उस दिन डाकुओं ने कालीदेवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था। संयोग से डाकुओं ने राजा को देख लिया।उन्होंने राजा को पकड़कर बाँध दिया। अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी। जब पूरी तैयारी हो गयी, तब डाकुओं के पुरोहित ने राजा से पूछा- तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा बोला- नहीं, वह मर गया। पुरोहित ने कहा कि इसका तो हृदय जला हुआ है। पुरोहित ने फिर पूछा-तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा बोला - वह भी मर चुकी है। पुरोहित ने कहा कि यह तो आधे अंग का है । अत: यह बलि के योग्य नहीं है। परन्तु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो! पुरोहित ने राजा के शरीर की जाँच की तो देखा,कि उसकी अँगुली कटी हुई है। पुरोहित बोला-अरे! यह तो अंग-भंग है, बलि के योग्य नहीं है ! छोड़ दो इसको ! डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।* *राजा अपने घर लौट आया। लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मन्त्री जहाँ भी हो, उसको तुरन्त ढूँढ़कर हमारे पास लाओ। जब तक मन्त्री वापस नहीं आयेगा, तबतक मैं अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।* *राजा के आदमियों ने मन्त्री को ढूँढ़ लिया और उससे तुरन्त राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मन्त्री ने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! मन्त्री राजा के सामने उपस्थित हो गया । राजा ने बड़े आदरपूर्वक मन्त्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए जंगल वाली घटना सुनाकर कहा कि 'पहले मैं तुम्हारी बात को समझा नहीं। अब समझमें आया कि भगवान् की मेरे पर कितनी कृपा थी! भगवान् की कृपा से अगर मेरी अँगुली न कटता तो उस दिन मेरा गला कट जाता! परन्तु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया, तब तुमने कहा कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी तो वह कृपा क्या थी, यह अभी मेरी समझ में नहीं आया !* *मन्त्री बोला-महाराज, जब आप शिकार करने गये, तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता। आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता; क्योंकि मेरा घोड़ा आपके घोड़े से कम तेज नहीं है। डाकू लोग आपके साथ मेरे को भी पकड़ लेते। आप तो अँगुली कटी होने के कारण बच जाते पर मेरा तो उस दिन गला कट ही जाता! इसलिये भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था, राज्य से बाहर था; अत: मरने से बच गया।* *अब पुन: अपनी जगह वापस आ गया हूँ। यह भगवान् की कृपा ही तो है!* *कहानी का सार यह है कि आज कल मनुष्य को सुविधा भोगने की इतनी बुरी आदत हो गयी है की थोड़ी सी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित हो जाता है ,कई बार तो भगवान के अस्तित्त्व को भी नकारने लगता है उनके लिये यही संदेश है कि उस परमात्मा ने जब हम जन्म दिया है तो हमारा योगक्षेम भी वहां करने की जिम्मेदारी उसी की है बस हमे उसके प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी जैसे एक पिता के दो पुत्र हो एक कपूत दूसरा सपूत फिर भी पिता होने के नाते उसे दोनो की ही फिक्र रहेगी परंतु किसी भी कार्य अथवा सहयोग में प्राथमिकता सपूत को ही दी जाएगीु।* *इसी प्रकार हमें उस परमात्मा के प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी सुख दुख जीवन में धूप छांया की तरह बने रहते है कभी स्थायी नही रहते हमारे अंदर उनको व्यतीत करके का धैर्य जगाना होगा और यह केवल परमात्मा की भक्ति से ही संभव है।* *वनिता पंजाब*🌷🌷🌷 *जय श्री राम जय श्री कृष्ण*

वास्तु शास्त्र भवन-निर्माण का विज्ञान है। वास्तु के आधार पर बना भवन ब्रह्माण्ड से सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करता है और भवन के अंदर ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जिससे वहाँ सुख, शांति, प्रगति और सौहार्द का माहौल उत्पन्न होता है। वास्तु-शास्त्र के सिद्धांत ठोस वैज्ञानिक तथ्यों पर टिके हुए हैं, जिनका प्रयोग जीवन को सही दिशा देने और अधिकतम फल प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इन सिद्धांतों के आधार पर यदि भवन बनाया जाए और वहाँ रहते या कार्य करते समय कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखें, तो निश्चित ही बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। आइए, चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ सिद्धांतों की, जो जीवन को सुखमय और आनंदपूर्ण बनाने के लिए ज़रूरी हैं। वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों को बहुत महत्व दिया गया है। वास्तु के अनुसार मज़बूत तने वाले या ऊँचे-ऊँचे पौधे उत्तर-पूर्व, उत्तर व पूर्व दिशा में ही होने चाहिए। घर के आस-पास या घर के अन्दर कैक्टस, कीकर, बेरी या अन्य कांटेदार पौधे व दूध वाले पौधे लगाने से घर के लोग तनावग्रस्त, चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं और ऐसे पौधे स्त्रियों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। घर में तेज़ ख़ुश्बूदार पौधों को नहीं लगाना चाहिए। साथ ही घर में चौड़े पत्ते वाले पौधे, बोनसाई व नीचे की तरफ़ झुकी बेलें नहीं लगानी चाहिए। पौधे लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे सही प्रकार बढ़ें, सूखें नहीं और सूखने पर उन्हें तुरन्त बदल दें। घर में फलदार पौधे लगाना भी कभी-कभी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि जिस वर्ष फलदार पौधे पर फल कम लगें या न लगें, इस वर्ष आपको नुक़सान या परेशानी का सामना ज़्यादा करना पड़ेगा। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*💐💐🙏🙏💐💐 घर में तुलसी का पौधा उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें और तुलसी का पौधा ज़मीन से कुछ ऊँचाई पर ही लगाना उचित है। तुलसी के पौधे पर कलावा व लाल चुन्नियाँ आदि नहीं बांधनी चाहिए। त�

*🍄ध्यान कब करें🍄* *🍄समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम राम जी🍄*🍄🙏🙏🍄 अभी बात आये गी, कि हम ध्यान कब करें?🍄 ध्यान !!! तो कब के लिए, हम सब से पहले खुद को देखेंगे, हमें खुद को देखना होगा, कियों कि,ध्यान हम शान्ति, सकून, चैन व ऊंचाई को पाने के लिए कर रहे हैं l🍄 और शान्ति कब मिले गी ? या कब होती है ?🍄 हम यदी पूरे दिन को देखें गे, सुबह को अमृत वेल्ला (प्रभात) के समय सवेरे, 4 या 5 बजे पूरा माहोल, पूरा वातावरण शांतमय, पुरसकून होता है l🍄 हर तरफ शांति, हर तरफ ख़ामोशी, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी शान्ति होती है l बाहर भी शांती, और अंदर भी शांती l🍄 जैसे जैसी दिन निकले गा, वातावरण में शोर, आवाज़, हमारा उठना बैठना, शुरू हो जाये गा, और हमारे अंदर में भी कितने ही विचार आयें गे, कितने ही काम आयें गे, भाग दौड़ करें गे, आगे बढ़ें गे,🍄 फिर जैसे शाम होगी, फिर वातावरण शांत होने शुरू हो जाता है, फिर खामोशी हो जाती है और थोड़े समय के लिए वैसी ही पूर्ण शांती आ जाती है,🍄 शाम को कभी भी हम ध्यान से देखें गे, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी थोड़े समय के लिए शान्ति आ जाती है, फिर जैसे ही रात होगी, फिर नींद, आलस, सोना और ख्याल और विचार, सभी आना शुरू हो जाएँ गे,🍄 तो जो सुबह और श्याम इतनी शान्ति होती है उसका अर्थ यह होता है कि🍄 जैसे सुबह हुई रात गयी और दिन आया, जब रात जा रही होती है और दिन आ रहा होता है, तो जब दोनों कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के लिए, एक साथ मिल जाते हैं, तो पूरा वातावरण शांत हो जाता है ,फिर जैसे ही दिन आया और रात गयी तो दोनों अलग अलग हुए, तो फिर जैसे ही दिन आया तो शोर होना शुरू हो जाता है l🍄 फिर दिन गया, रात आयी, जब वोह जा रहा होता है, तो फिर जब दोनों श्याम को कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के मिलते हैं, , तो फिर वातावरण शांत और पुरसुकून हो जाता है l🍄 फिर जैसे ही रात आयी दिन गया तो फिर नीद आलस सोना कितने विचार, कितने ख्याल आना शुरू हो जाते हैं🍄 तो जब दिन और रात दोनों मिलते हैं उसी समय पूर्ण शान्ति और सकून हो जाता है सुबह को भी श्याम को भी बाकी जब तक अलग अलग रहें गे, तब तक, विचार, परेशानी,शोर सब चलता रहता है l🍄 तो यह बात प्रत्येक दिन हमें सिखा रही है, कि हमारी आत्मा जब तक परमात्मा से अलग रहेगी तब तक कभी दुःख कभी सुख कभी ख़ुशी कभी गम कभी अंदर में उत्पाद ( उधम ) कभी आलस कभी मायूसी कभी खुशी यह चलते रहें गे l🍄 लेकिन हमें वोह सच्चा सुख सच्ची शान्ति तभी मिले गी जब हमारी आत्मा और परमात्मा एक हो जाएँ गे उस से मिल कर के हम एक होंगे l🍄 इसीलिए सुबह और श्याम दो वक़्त, दो समय ऐसे हैं, जब हम ध्यान में बैठें गे, उसी समय वातावरण भी शांत होगा, और, वोह भी हमें सहायता करे गा वोह भी हमें शांती प्रदान करेगा, और, हमारा अंदर भी उसी वातावरण की वजह से शांत होगा l🍄 फिर हम बैठें गे तो हमारा ध्यान सरलता से , आसानी से लगे गा और हमें उसे लगाने पर हम पर बहुत अच्छे तरीके से बेहतर प्रभाव पड़े गा , तो उसी वक़्त हमारा ध्यान, शांत वातावरण में, बहुत आसानी से और अच्छाई से लग जाता है l🍄 और अगर ध्यान हो जाये, तो अच्छा है, यदी , उसी वक़्त हम कर न पाएं तो फिर भी कोई बात नहीं लेकिन हम ध्यान करें ज़रूर, ध्यान करना अनिवार्य है l🍄 यदी हम सुबह को नहीं कर पाते, श्याम को नहीं कर पाते, कभी घर का काम है कभी आफिस का काम है, कभी दूकान का काम है, और हम नहीं कर पा रहे हैं, तो कोई बात नहीं, हमें जो भी अच्छा समय लगे, जो समय खाली लगे, हम अपना समय निर्धारित कर दें l यानि कि, समय निर्धारित करना महत्वपूर्ण है l🍄 सुबह, श्याम, हो तो अच्छा है, नहीं है, तो कोई भी समय निर्धारित करें, कियों कि मनुष्य का एक स्वभाव होता है कि, हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l हम देखें गे कि हमें सुबह को सवेरे कहीं जाना होगा, तो हम सुबह उठें गे, नहाएं गे तैयार होंगे नाश्ता लेंगे सामान पैक करें गे, ब्रिफकेस लें गे और काम पर जायेंगे, हमारा कुछ भी नहीं छूटे गा, किसी को भी हम नहीं छोड़ें गे, न नहाने को, न तैयार होने को, न नाश्ते को, न ब्रिफकेस लेने को, न सामान को छोड़ें गे l🍄 हम सब कुछ ले कर जायेंगे अगर छूटे गा तो सिर्फ यह होगा कि, उस दिन हम मंदिर नहीं जायेंगे कि ‘मुझे बहुत जल्दी है मैं नहीं जा सका’ सिर्फ मंदिर छूटे ग बाकी कुछ भी नहीं छूटे ग कियों कि इंसान का स्वभाव है कि हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l ध्यान, नाम सिमरन, वोह तो ऐसे हैं, जो हमें संसार में भी सुख दें लेकिन आगे साहिब तक पहुंचाएं, तो उसे हम कभी छोड़ें नहीं इसलिए नाम को ऐसे जोड़ कर के रखें कि जब समय निर्धारित हो जाता है तो फिर हमारी एक आदत सी बन जाती है, फिर उसी ,समय जहाँ कहीं भी होंगे जैसे भी होंगे, तो हमारा दिमाग सोचे गा कि हमारे ध्यान का समय हो गया है, और हम ध्यान करें गे l यदी कोई समय निर्धारित नहीं करें गे, तो कहें गे कि, अभी करता हूँ बाद में करता हूँ थोड़ी देर के बाद करता हूँ और ऐसे करते हुए, समय भी पूरा हो जायेगा और हम बिसतर में सो जायेंगे, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाएंगे l अधिकतर ऐसे ही होता है, इस लिए उसको ऐसे बना के रखो जैसे हम हर दिन खाना खाते हैं l हम हर दिन तीन बार खाना खाते हैं, लेकिन कभी खाना याद कर के नहीं खाते है, हम जैसे खाना खाने का समय होता है हम खाना खा लेते हैं, हम प्रतेक दिन तीन बार खाना खाते हैं परन्तु उसे सिर्फ याद नहीं करते हैं पर समय पर खा लेते हैं सिर्फ उसे बैठ कर याद नहीं करते l🍄 यदी कभी एक दिन उपवास या व्रत रखें, तो दिन में कितनी बार खाना याद आता है हर दिन तीन बार खाते हैं, कभी याद नहीं आता, एक दिन सिर्फ उपवास रखा, कितनी बार खाना याद आया, और बड़ी बात यह नहीं कि खाना याद आया, बड़ी बात यह है कि, जब खाने का वक़्त गुज़र जाता है फिर कहते हैं कि ‘अभी तो भूख ही मर गयी, अब में रात को एकसाथ खा लूं गा l🍄 वास्तव में भूक मरी नहीं उस समय हमें भूख लगी थी कियों कि, हमें उस समय समय खाना खाने की आदत थी🍄 जब वोह समय आया, उस की याद आयी, उस आदत ने हमें सताया, वोह याद नहीं पर वोह आदत का समय गुज़र गया तो फिर हमें भूख ही नहीं थी l🍄 वैसे ही जब हम ध्यान में बैठें गे तो उस खाने की तरह हम खुद में आदत ड़ाल दें🍄 तो जहाँ कहीं भी हों तो उस समय हमें ध्यान का समय याद आये गा कि हमारे ध्यान का समय है तो हम ध्यान कर पाएंगे l इसीलिए ध्यान और सिमरन से खुद को जोड़ के रखिये, कि जैसे हम हर दिन खान खाते हैं🍄 हम प्रतेक दिन बच्चों को तैयार कर के इस्कूल भेजते हैं, रात को किसी वक़्त कैसे भी सोएं, वच्चों का वक़्त होता है, हम उसी वक़्त उठते हैं बच्चों को तैयार करते हैं बस हर दिन की दिनचर्या है l🍄 हमारा दूकान है ऑफिस है हम रात को कितनी भी देर से सोएं, कैसे भी थके हों, सुबह को उठते हैं चाबियाँ ले के खुद पहुँच जाते हैं l तो जैसे,हम हर दिन, हम, अपने समय से काम करते हैं,नाम सिमरन को भी, हम, वैसे ही खुद स, अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें l🍄 यह न बताएं,कि यह कोई बड़ी चीज़ है,या ऊंची चीज़ है, पर हमारी दिनचर्या है, और हमें महसूस भी नहीं होगा, और हम संभलते जायेंगे, हम सुधरते जायेंगे हम सत्यकर्मी बनते जाएँ गे l🍄 सत्य कर्मों की वजह से सदा ही सुख लेते हुए, हम आगे बड़ पाएंगे, इसलिए हो सके तो सुबह श्याम, यदी सुबह श्याम न कर पाएं, तो किसी समय, कहीं पर भी परन्तु, अपना समय निर्धारित कर लें, और उसी समय हम नाम ध्यान करें तो हमारी अंदर की ऊंचाई बढ़ती जायेगी l🍄 समय निर्धारित करना,अत्यंत आवयशक है l🍄

 Why After Death, the Ordinary Man Forgets His Former Life: Vnita punjab🌷🌷🙏🙏🌷🌷🇮🇳💗 Unnatural death, and death in a state of bodily attachment, are not only painful, they also obscure memory. Of course, unless one is spiritually advanced, it is not always desirable to remember one's former life. The after-death oblivion of one's previous identity allows him to forget his past consciousness of failure, pain, and attachments, and to begin life anew. The only disadvantage is that if he has not learned from past wrong actions, he may repeat those experiences, ignoring the warning of their consequences-just as the inveterate alcoholic continues to drink the infernal liquid, even with the conscious knowledge of probable death from liver damage. Though the pure consciousness of the soul maintains a continuity of remembrance from one life to another, the body identified consciousness does not. The fact is, memory after death cannot survive under the following conditions- (a) if ...
 THE YOGA HAVE BEEN PRACTICING FROM MORE THAN 14+ YEARS - Raja yoga combined with Bhakti yoga. 1. RAJA YOGA -  Raja yoga popularly known as 'King of all yogas'. It can be considered as the yoga which totally deals with mind and there is no physical struggling exercises like Hatha Yoga. It is more centered on mind fitness than physical fitness. Physical fitness can make a person a good looking, attractive, less affected by diseases but mental fitness makes a person aware of the TRUTH, complete, an identifier of reality. But both are mandatory for any beings to live a healthy life. The philosophy of Raja yoga goes beyond the boundaries of many styles of yoga practising today.  The eight steps of Raja Yoga provide systematic instruction to attain inner peace, clarity, self-control and Realisation- 1. Yamas (Abstentions):   -Ahimsa (non-injury, nonviolence ),  -Satya (truthfulness),  -Asetya (non-stealing),  -Brahmacharya (chastity, pure way of life),...
 Who is a perfect Spiritual being? (Someone who has acquired the ultimate truth) Generally we misunderstood by the lack of proper knowledge about Pristine Scriptures, may be we can't understand what is written in it or fail to connect with our day to day life appliances. In that situation we consider those people who has some extra definitions or explanations of something we are unaware of it. But not all time it is Spiritual!! Vnita kasnia punjab🌷🌷🙏🙏🌷🌷🇮🇳 A perfect Spiritual person is the one who is Highly conscious or God-realised or a Guru or the One who is fully aware of everything but it is not required that they will always possess supernatural activities/powers/mystics. If we see deeply then Mystics abilities are totally different from Spiritualism, but modern Gurus or followers has closed their eyes to see the practical thing and they assume that 'Mysticism is directly proportional to Spiritualism'. A person having mystic powers may not be spiritual, can be a...
 🌹 LORD KRISHNA, MOST CHALLENGING PERSONALITY (WE) HUMANS CAN EVER HEAR...🌹:  सत सत नमन श्री सचिदानंद के चरणों में 🙏! Starting from birth till death, each and every phase in life of Lord Krishna is full of challenges/difficulties and at the same time "He represents the best character how to face the most difficult situations in life without violating Dharma.". 🌹 Can we ever imagine of birth in such critical situation where death is very certain before birth itself, enemies are waiting to kill just after birth 🌹 Parents are locked in the darkest part of jail being a King & queen, tortured at utmost level of adharma 🌹 His childhood is full of misery and deathly attempts just to kill a small boy, who is the heart & soul of Vrindavan 🌹🔥 At very early age, can say just after birth, he started facing difficult challenges, killing all asuras one after other, saving his beloved people at the same time maintaining bliss 🌹 But he never backed out of fear and disgrace, ...
 🌺 जानिए किस देवता के तेज से देवी दुर्गा के कौन से अंग बने 🌺 भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ।  यमराज के तेज से मस्तक के केश।  भगवान विष्णु के तेज से भुजाएं।  चंद्रमा के तेज से स्तन।  इंद्र के तेज से कमर।  वरुण के तेज से जंघा।  पृथ्वी के तेज से नितंब।  ब्रह्मा के तेज से चरण।  सूर्य के तेज से दोनों पौरों की अंगुलियां,  प्रजापति के तेज से सारे दांत।  अग्नि के तेज से दोनों नेत्र।  संध्या के तेज से भौंहें।  वायु के तेज से कान।  अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।  कहा जाता है कि फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह को प्रदान किया।  इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्ज्वल हार, क...
 जो #खुद को #शेर समझ बैठे है वह इस #तस्वीर को जरा #गौर से देख ले  जब किसान अपनी पर आता है तो शेर को भी #कुत्ता बना कर #दौड़ा दौड़ा कर #मारता है _समझ जाओ और #सुधार जाओ वरना #अंजाम #बुरा होगा #इन्कलाब किसान जब तक #खामोश है ठीक है पर कोई #गधा किसान की #खामोशी को #कमजोरी समझने की भूल न करे Vnita Kasnia Punjab #भारतीय #किसान #किसान_आंदोलन सैनिक देश की रक्षा के लिए कार्य करते है ,उनको इस कार्य के लिए #सरकार #सैलरी देती है ,किसान का काम भी #सैनिकों की तरह महत्वपूर्ण है क्योंकि किसान तो दिन रात मेहनत करता है । आज 1 % किसान को छोड़ दें जिनके पास ज्यादा #जमीन है या नोकरी व साइड बिज़नेस करता है बाकी अधिकतर किसान गरीब है । अधिकतर किसान ऋण के मकड़जाल में फंसा हुआ है । सरकार ने किसानों की आय दुगना करने का वादा किया ,#स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की बात की थी परन्तु इन वादों से दूर ऐसे विधेयक ला रही है जो पूंजीपतियों के भला करने वाले है ,शायद सरकार अंतरराष्ट्रीय कानूनों से बंधी हुई मजबूर हो परन्तु किसान जिस दिन सड़को पर आया सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ेगा । मोदी सरकार से किसानों ,व्यापारियों ,म...
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 मुख्य मेनू खोलें खोजें वाट्सऐप Vnita Kasnia स्मार्ट फोनों पर चलने वाली एक प्रसिद्ध तत्क्षण मेसेजिंग सेवा है किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें वाट्सऐप मैसेंजर (अंगेजी: WhatsApp Messenger) स्मार्ट फोनों पर चलने वाली एक प्रसिद्ध तत्क्षण मेसेजिंग सेवा है। इसकी सहायता से इन्टरनेट के द्वारा दूसरे 'वाट्सऐप' उपयोगकर्ता के स्मार्टफ़ोन पर टेक्स्ट संदेश के अलावा ऑडियो, छवि, वीडियो तथा अपनी स्थिति (लोकेशन) भी भेजी जा सकती है।[1][2] वाट्सऐप WhatsApp logo.svg विकासकर्ता WhatsApp Inc. मौलिक संस्करण 2009 स्थिर संस्करण 2.12.330 (एंड्राइड) / 2.12.9 (आईओएस) / अक्टूबर 24, 2015; 5 वर्ष पहले (एंड्राइड) / अक्टूबर 14, 2015; 5 वर्ष पहले (आईओएस) प्रोग्रामिंग भाषा Erlang प्रचालन तंत्र आईओएस एंड्रॉइड ब्लैकबेरी ओएस ब्लैकबेरी 10 विंडोज़ फोन नोकिया सीरीज 40 सिम्बियन तिज़ेन फायरफॉक्स ओएस भाषा बहुभाषी प्रकार इन्स्टेंट मेसेजिंग लाइसेंस फ्रीमियम जालस्थल www.whatsapp.com सितंबर 2015 की स्थिति के अनुसार, वाट्सऐप पर 90 करोड़ अधिक उपयोगकर्ताओं के साथ, यह विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय तत्क...
 भजन अनिल नागौरी किसी अन्य भाषा में पढ़ें ध्यान रखें संपादित करें Learn more इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। भारतीय संगीत के मुख्य रूप से तीन भेद किये जाते हैं। शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और लोक संगीत। भजन सुगम संगीत की एक शैली है। इसका आधार शास्त्रीय संगीत या लोक संगीत हो सकता है। इसको मंच पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन मूल रूप से यह किसी देवी या देवता की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत है।[1] सामान्य रूप से उपासना की सभी भारतीय पद्धतियों में इसका प्रयोग किया जाता है। भजन मंदिरों में भी गाए जाते हैं। हिंदी भजन, जो आम तौर पर हिन्दू अपने सर्वशक्तिमान को याद करते हैं या गाते हैं| कुछ विख्यात भजन रचनाकारों की नामावली - मीराबाई, सूरदास, तुलसीदास, रसखान। सन्दर्भ  Last edited 2 months ago by Vnita kasnia punjab भारतीय संगीत राष्ट्रीय संगीत, लोक संगीत, फिल्म, भारतीय रॉक और भारतीय पॉप की कई इस्में शामिल हैं सुगम संगीत हारमोनियम
   भजन: आइए याद करें माता पार्वती के दुलारे श्री गणेश को गणेश भजन: आइए याद करें माता पार्वती के दुलारे श्री गणेश को By: Vnita kasnia punjab Jun 06, 2020,  शिव जी के लाल भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी पूजा भगवान गणेश वंदना, स्तुति के बिना शुरू की जाती है उसका फल नहीं मिलता। भक्त ये बात अच्छी तरह समझते हैं इसलिए सभी धार्मिक कार्यों की शुरुआत से पहले गजानन को याद किया जाता है। आइए मिलकर गाएं ये बेहद खूबसूरत गणेश भजन और याद करें माता पार्वती के दुलारे, श्री गणेश को भोले बाबा जी की आँखों के तारे ॥ मेरे लाडले गणेश प्यारे प्यारे ॥ तेरी काया कंचन कंचन, तेरी सूंड सुंडाली मूरत, तेरी महिमा अपरम्पार, प्रभु अमृत रस बरसा जाना, आ जाना । सबसे पहले हम तुमको मनाएं । मन मंदिर मे झांकी सजाएं । दे दो भक्ति का दान । ॥ मेरे लाडले गणेश प्यारे प्यारे ॥ मेरे विधन विनाशक देवा, सारे जग मे आनंद छाया, बाजे सुर और ताल, घुंघरू की खनक खनक जाना, आ जाना । Share ਸਵਾਗਤ ਹੈ ਸਵਾਗਤ ਹੈ ਸਵਾਗਤ ਹੈ ਸਵਾਗਤ ਹੈ लेखक लेख
  Ganesh Ji Bhajan: Vnita kasnia Punjab  प्रपूज्य गणेश जी स्वयंत्रू शिवजी और माता पार्वती के छोटे पुत्र हैं। इनका वाहन मूषक है। गणेश जी, गणों के स्वामी है और यही कारण है कि इन्हें गणपति भी कहा जाता है। इन्हें केतु का देवता माना गया है। हिंदू धर्म के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है। इसी के चलते इन्हें प्रथम पूज्य भी कहा जाता है। गणेशजी को सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन भी कहा जाता है। गणपति बप्पा बुद्धि दाता हैं। आज बुधवार हैं और आज के दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। आज के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गणेश जी की महिमा अपरंपार है। ये अपने भक्तों के हर दुख को दूर करते हैं। जैसा कि हमने आपको बताया कि गणेश जी के कई नाम हैं लेकिन हर नाम के साथ आस्था और भक्ति की अपनी ही एक अलग कहानी है। माना जाता है कि ये आदिदेव हैं और हर युग में इन्होंने अवतार लिया है। इनकी पूजा करते समय व्यक्ति अगर गणेश जी का भजन किया जाए तो इसका फल दोगुना हो जाता है।...

सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में। (Vnita Kasnia punjab)हृदय में माँ गौरी लक्ष्मी, कंठ शारदा माता है।जो भी मुख से वचन कहें, वो वचन सिद्ध हो जाता है।हैं गुरु ब्रह्मा, हैं गुरु विष्णु, हैं शंकर भगवान आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।जनम के दाता मात पिता हैं, आप करम के दाता हैं।आप मिलाते हैं ईश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं।दुखिया मन को रोगी तन को, मिलता है आराम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।निर्बल को बलवान बना दो, मूर्ख को गुणवान प्रभु।देवकमल और वंसी को भी ज्ञान का दो वरदान गुरु।हे महा दानी हे महा ज्ञानी, रहूँ मैं सुबहो-शाम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।कर्ता करे ना कर सके, पर गुरु किए सब होये।सात द्वीप नौ खंड मे, मेरे गुरु से बड़ा ना कोए॥सब धरती कागज़ करूँ, लेखनी सब वनराय।समुद्र को स्याही, पर गुरु गुण लिख्यो ना जाए॥सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।

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