*कहानी* *🌻भगवान् की कृपा🌻* *एक राजा था। उसका मन्त्री भगवान का भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी। मृत्यु का समाचार सुनते ही मन्त्री बोल उठा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! यह बात राजा को बुरी तो लगी, पर वह चुप रहा।* *कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। मन्त्रीने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! राजा को गुस्सा आया, पर उसने गुस्सा पी लिया, कुछ बोला नहीं।* *एक दिन राजाके पास एक नयी तलवार बनकर आयी। राजा अपनी अंगुली से तलवार की धार देखने लगा तो धार बहुत तेज होने के कारण चट उसकी अँगुली कट गयी! मन्त्री पास में ही खड़ा था । वह बोला- भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! अब राजा के भीतर जमा गुस्सा बाहर निकला और उसने तुरन्त मन्त्री को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्न-जल ग्रहण मत करना। मन्त्री बोला - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी!* *मन्त्री अपने घर पर भी नहीं गया, साथ में कोई वस्तु भी नहीं ली और राज्य के बाहर निकल गया।* *कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिये जंगल गया , जंगल में एक हिरण का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया।उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गये वहाँ जंगल में डाकुओं का एक दल रहता था। उस दिन डाकुओं ने कालीदेवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था। संयोग से डाकुओं ने राजा को देख लिया।उन्होंने राजा को पकड़कर बाँध दिया। अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी। जब पूरी तैयारी हो गयी, तब डाकुओं के पुरोहित ने राजा से पूछा- तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा बोला- नहीं, वह मर गया। पुरोहित ने कहा कि इसका तो हृदय जला हुआ है। पुरोहित ने फिर पूछा-तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा बोला - वह भी मर चुकी है। पुरोहित ने कहा कि यह तो आधे अंग का है । अत: यह बलि के योग्य नहीं है। परन्तु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो! पुरोहित ने राजा के शरीर की जाँच की तो देखा,कि उसकी अँगुली कटी हुई है। पुरोहित बोला-अरे! यह तो अंग-भंग है, बलि के योग्य नहीं है ! छोड़ दो इसको ! डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।* *राजा अपने घर लौट आया। लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मन्त्री जहाँ भी हो, उसको तुरन्त ढूँढ़कर हमारे पास लाओ। जब तक मन्त्री वापस नहीं आयेगा, तबतक मैं अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।* *राजा के आदमियों ने मन्त्री को ढूँढ़ लिया और उससे तुरन्त राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मन्त्री ने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! मन्त्री राजा के सामने उपस्थित हो गया । राजा ने बड़े आदरपूर्वक मन्त्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए जंगल वाली घटना सुनाकर कहा कि 'पहले मैं तुम्हारी बात को समझा नहीं। अब समझमें आया कि भगवान् की मेरे पर कितनी कृपा थी! भगवान् की कृपा से अगर मेरी अँगुली न कटता तो उस दिन मेरा गला कट जाता! परन्तु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया, तब तुमने कहा कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी तो वह कृपा क्या थी, यह अभी मेरी समझ में नहीं आया !* *मन्त्री बोला-महाराज, जब आप शिकार करने गये, तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता। आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता; क्योंकि मेरा घोड़ा आपके घोड़े से कम तेज नहीं है। डाकू लोग आपके साथ मेरे को भी पकड़ लेते। आप तो अँगुली कटी होने के कारण बच जाते पर मेरा तो उस दिन गला कट ही जाता! इसलिये भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था, राज्य से बाहर था; अत: मरने से बच गया।* *अब पुन: अपनी जगह वापस आ गया हूँ। यह भगवान् की कृपा ही तो है!* *कहानी का सार यह है कि आज कल मनुष्य को सुविधा भोगने की इतनी बुरी आदत हो गयी है की थोड़ी सी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित हो जाता है ,कई बार तो भगवान के अस्तित्त्व को भी नकारने लगता है उनके लिये यही संदेश है कि उस परमात्मा ने जब हम जन्म दिया है तो हमारा योगक्षेम भी वहां करने की जिम्मेदारी उसी की है बस हमे उसके प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी जैसे एक पिता के दो पुत्र हो एक कपूत दूसरा सपूत फिर भी पिता होने के नाते उसे दोनो की ही फिक्र रहेगी परंतु किसी भी कार्य अथवा सहयोग में प्राथमिकता सपूत को ही दी जाएगीु।* *इसी प्रकार हमें उस परमात्मा के प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी सुख दुख जीवन में धूप छांया की तरह बने रहते है कभी स्थायी नही रहते हमारे अंदर उनको व्यतीत करके का धैर्य जगाना होगा और यह केवल परमात्मा की भक्ति से ही संभव है।* *वनिता पंजाब*🌷🌷🌷 *जय श्री राम जय श्री कृष्ण*

Comments

Popular posts from this blog

सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिन्दी में Full Ramayan Story in HindiBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦 इस लेख में हमने सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिन्दी में (Full Ramayan Story in Hindi) लिखा है। यह हमने लघु रूप में लिखा है जिसमे हमने इस महाकाव्य के मुख्य भागों को विस्तार रूप में बताया है। इसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी।http://vnita8.blogspot.com/2021/04/blog-post_28.htmlवैसे तो रामायण कथा बहुत लम्बी है परन्तु आज हम आपके सामने इस कहानी का एक संक्षिप्त रूप रेखा प्रस्तुत कर रहे हैं। रामायण की कहानी मुख्य रूप से बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, लंका कांड, और उत्तरकांड में विभाजित है।रामायण के महाकाव्य में 24000 छंद और 500 सर्ग हैं जो कि 7 भागों में विभाजित हैं। रामायण श्री राम, लक्ष्मण, सीता की एक अद्भुत अमर कहानी है जो हमें विचारधारा, भक्ति, कर्तव्य, रिश्ते, धर्म, और कर्म को सही मायने में सिखाता है।आईये शुरू करते हैं – रामायण की पूर्ण कथा हिंदी में (The Epic Story of Ramayana in Hindi) संक्षिप्त रूप में…http://vnitak.blogspot.com/2021/05/by-image-from-google-image-from-google.html 1. बालकांड Bala Kanda of Ramayan Story in Hindiराम-सीता जन्म कथाप्राचीन काल की बात है सरयू नदी के किनारे कोशला नामक राज्य था। कोशला राज्य की राजधानी अयोध्या थी जिसके राजा का नाम दशरथ था। राजा दशरथ के तीन पत्नियाँ थी जिनके नाम थे – कौशल्या, कैकई और सुमित्रा। परन्तु बहुत समय से उनकी कोई भी संतान नहीं थी जिसके कारण उन्हें उत्तराधिकारी की कमी हमेशा सताती थी।इसके विषय में उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से बात की और पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के कारण उनकी पत्नियों को चार पुत्र हुए। उनकी पहली पत्नी कोशल्या से राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। सभी राजकुमार शास्त्रों और युद्ध कला में निपूर्ण थे।जब राम 16 वर्ष के हुए तब ऋषि विश्वामित्र, रजा दशरथ के पास गए और यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों का अंत करने में राम और लक्ष्मण की मदद मांगी। राम और लक्ष्मण ने इस कार्य को आदर से मान और कई राक्षसों का अंत किया जिसके फलस्वरूप उन्हें ऋषि विश्वामित्र ने कई दिव्य अस्त्र प्रदान किये।एक दुसरे प्रदेश मिथिला के राजा जनक भी निसंतान थे। ऋषियों के कहने पर राजा जनक ने अपने राज्य के खेत में हल चलाना शुरू किया। हल चलते समय उन्हें एक धातु से टकराने की आवाज़ आई। जब राजा जनक ने देखा तो उन्हें सित के कलश में एक कन्या जमीन में गड़ी हुई मिली। उस कन्या को जैसी ही राजा जनक ने मिटटी से निकाला राज्य में बारिश होने लगी और उस कन्या को जनक अपने महल ले गए। सित के कलश में पाने के कारण उस कन्या का नाम सीता रखा गया।पढ़ें: कुमारी कंदम क्या है?श्री राम और सीता विवाह Shri Rama & Mata Sita Marriageधीरे-धेरे सीता बड़ी हुई और उनके विवाह का समय आया। श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के जेष्ट पुत्र थे और माता सीता उनकी धर्मपत्नी थी। राम बहुत ही साहसी, बुद्धिमान और आज्ञाकारी और सीता बहुत ही सुन्दर, उदार और पुण्यात्मा थी।माता सीता की मुलाकात श्री राम से उनके स्वयंवर में हुई जो सीता माता के पिता, मिथिला के राजा जनक द्वारा संयोजित किया गया था। यह स्वयंवर माता सीता के लिए अच्छे वर की खोज में आयोजित किया गया था। राजा जनक ने सीता का स्वयंवर रखा जिसमे उन्होंने शिव जी के धनुष को उठाकर उसमे रस्सी चढाने वाले व्यक्ति से सीता का विवाह कराने की शर्त राखी।उस आयोजन में कई राज्यों के राजकुमारों और राजाओं को आमंत्रित किया गया था। शर्त यह थी की जो कोई भी शिव धनुष को उठा कर धनुष के तार को खीच सकेगा उसी का विवाह सीता से होगा। सभी राजाओं ने कोशिश किया परन्तु वे धनुष को हिला भी ना सके।जब श्री राम की बारी आई तो श्री राम ने एक ही हाथ से धनुष उठा लिया और जैस ही उसके तार को खीचने की कोशिश की वह धनुष दो टुकड़ों में टूट गया। इस प्रकार श्री राम और सीता का विवाह हुआ। इस प्रकार श्री राम का विवाह सीता से, लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से, भरत का विवाह मांडवी से और शत्रुधन का विवाह श्रुतकीर्ति से हो गया।2. अयोध्याकांड Ayodhya Kanda of Ramayan Story in Hindiअयोध्या राज घराने में षड्यंत्र Ayodhya Conspiracy in Royal Familyअयोध्या के राजा दशरथ के तीन पत्नियां और चार पुत्र थे। राम सभी भाइयों में बड़े थे और उनकी माता का नाम कौशल्या था। भरत राजा दशरथ के दूसरी और प्रिय पत्नी कैकेयी के पुत्र थे। दुसरे दो भाई थे, लक्ष्मण और सत्रुघन जिनकी माता का नाम था सुमित्रा।जब राम को एक तरफ राज तिलक करने की तैयारी हो रही थी तभी उसकी सौतेली माँ कैकेयी, अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने का षड्यंत्र रच रही थी। यह षड्यंत्र बूढी मंथरा के द्वारा किया गया था। रानी कैकेयी ने एक बार राजा दशरथ की जीवन की रक्षा की थी तब राजा दशरथ ने उन्हें कुछ भी मांगने के लिए पुछा था पर कैकेयी ने कहा समय आने पर मैं मांग लूंगी।उसी वचन के बल पर कैकेयी ने राजा दशरथ से पुत्र भरत के लिए अयोध्या का सिंघासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। श्री राम तो आज्ञाकारी थे इसलिए उन्होंने अपने सौतेली माँ कैकेयी की बातों को आशीर्वाद माना और माता सीता और प्रिय भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत करने के लिए राज्य छोड़ कर चले गए।इस असीम दुख को राजा दशरथ सह नहीं पाए और उनकी मृत्यु हो गयी। कैकेयी के पुत्र भरत को जब यह बात पता चली तो उसने भी राज गद्दी लेने से इंकार कर दिया।https://g.mymandir.com/corona-virus-awareness-1/?name=Vnita-punjabपढ़ें: महाभारत की मुख्य कहानियां3. अरण्यकांड Aranya Kanda of Ramayan Story in Hindiचौदह वर्ष का वनवास Fourteen Year Exileराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने कई असुरों का संहार किया और कई पवित्र और अच्छे लोगों से भी वे मिले। वे वन चित्रकूट में एक कुटिया बना कर रहने लगे। एक बार की बात है लंका के असुर राजा रावन की छोटी बहन सूर्पनखा ने राम को देखा और वह मोहित हो गयी।उसने राम को पाने की कोशिश की पर राम ने उत्तर दिया – मैं तो विवाहित हूँ मेरे भाई लक्ष्मण से पूछ के देखो। तब सूर्पनखा लक्ष्मण के पास जा कर विवाह का प्रस्ताव रखने लगी पर लक्ष्मण ने साफ़ इनकार कर दिया। तब सूर्पनखा ने क्रोधित हो कर माता सीता पर आक्रमण कर दिया। यह देख कर लक्ष्मण ने चाकू से सूर्पनखा का नाक काट दिया। कटी हुई नाक के साथ रोते हुए जब सूर्पनखा लंका पहुंची तो सारी बातें जान कर रावण को बहुत क्रोध आया। उसने बाद रावन ने सीता हरण की योजना बनायीं।और पढ़ें - रामनवमी पर निबंध Essay on Ram Navami Festival in Hindiसीता हरण Abduction of Sitaपढ़ें: सीता चोरी की पूर्ण कथायोजना के तहत रावन ने मारीच राक्षश को चित्रकूट के कुटिया के पास एक सुन्दर हिरन के रूप में भेजा। जब मारीच को माता सीता ने देखा तो उन्होंने श्री राम से उस हिरण को पकड़ के लाने के लिए कहा।सीता की बात को मान कर राम उस हिरण को पकड़ने उसके पीछे-पीछे गए और लक्ष्मण को आदेश दिया की वो सीता को छोड़ कर कहीं ना जाए। बहुत पिचा करने के बाद राम ने उस हिरण को बाण से मारा। जैसे ही राम का बाण हिरण बने मारीच को लगा वह अपने असली राक्षस रूप में आ गया और राम के आवाज़ में सीता और लक्ष्मण को मदद के लिए पुकारने लगा।सीता ने जब राम के आवाज़ में उस राक्षश के विलाप को देखा तो वो घबरा गयी और उसने लक्ष्मण को राम की मदद के लिए वन जाने को कहा। लक्ष्मण ने सीता माता के कुटिया को चारों और से “लक्ष्मण रेखा” से सुरक्षित किया और वो श्री राम की खोज करने वन में चले गए।योजना के अनुसार रावण एक साधू के रूप में कुटिया पहुंचा और भिक्षाम देहि का स्वर लगाने लगा। जैसे ही रावण ने कुटिया के पास लक्ष्मण रेखा पर अपना पैर रखा उसका पैर जलने लगा यह देखकर रावण ने माता सीता को बाहर आकर भोजन देने के लिए कहा। जैसे ही माता सीता लक्ष्मण रेखा से बाहर निकली रावण ने पुष्पक विमान में सीता माता का हरण कर लिया।हजब राम और लक्ष्मण को यह पता चला की उनके साथ छल हुआ है तो वो कुटिया की और भागे पर वहां उन्हें कोई नहीं मिला। जब रावण सीता को पुष्पक विमान में लेकर जा रहा था तब बूढ़े जटायु पक्षी ने रावण से सीता माता को छुड़ाने के लिए युद्ध किया परन्तु रावण ने जटायु का पंख काट डाला।जब राम और लक्ष्मण सीता को ढूँढते हुए जा रहे थे तो रास्ते में जटायु का शारीर पड़ा था और वो राम-राम विलाप कर रहा था। जब राम और लक्ष्मण ने उनसे सीता के विषय में पुछा तो जटायु ने उन्हें बताया की रावण माता सीता को उठा ले गया है और यह बताते बताते उसकी मृत्यु हो गयी।4. किष्किंधा कांड Kishkindha Kand of Ramayan in Hindiराम और हनुमान Ram and Hanumanहनुमान किसकिन्धा के राजा सुग्रीव की वानर सेना के मंत्री थे। राम और हनुमान पहली बार रिशिमुख पर्वत पर मिले जहाँ सुग्रीव और उनके साथी रहते थे। सुग्रीव के भाई बाली ने उससे उसका राज्य भी छीन लिया और उसकी पत्नी को भी बंदी बना कर रखा था।जब सुग्रीव राम से मिले वे दोनों मित्र बन गए। जब रावण पुष्पक विमान में सीता माता को ले जा रहा था तब माता सीता ने निशानी के लिए अपने अलंकर फैक दिए थे वो सुग्रीव की सेना के कुछ वानरों को मिला था। जब उन्होंने श्री राम को वो अलंकर दिखाये तो राम और लक्ष्मण के आँखों में आंसू आगये।श्री राम ने बाली का वध करके सुग्रीव को किसकिन्धा का राजा दोबारा बना दिया। सुग्रीव ने भी मित्रता निभाते हुए राम को वचन दिया की वो और उनकी वानर सेना भी सीता माता को रावन के चंगुल से छुडाने के लिए पूरी जी जान लगा देंगे।वानर सेना Monkey Armyउसके बाद हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, ने मिल कर सुग्रीव की वानर सेना का नेतृत्व किया और चारों दिशाओं में अपनी सेना को भेजा। सभी दिशाओं में ढूँढने के बाद भी कुछ ना मिलने पर ज्यादातर सेना वापस लौट आये।दक्षिण की तरफ हनुमान एक सेना लेकर गए जिसका नेतृत्व अंगद कर रहे थे। जब वे दक्षिण के समुंद तट पर पहुंचे तो वे भी उदास होकर विन्द्य पर्वत पर इसके विषय में बात कर रहे थे।वहीँ कोने में एक बड़ा पक्षी बैठा था जिसका नाम था सम्पाती। सम्पति वानरों को देखकर बहुत खुश हो गया और भगवान का शुक्रिया करने लगा इतना सारा भोजन देने के लिए। जब सभी वानरों को पता चला की वह उन्हें खाने की कोशिश करने वाला था तो सभी उसकी घोर आलोचना करने लगे और महान पक्षी जटायु का नाम लेकर उसकी वीरता की कहानी सुनाने लगे।जैसे ही जटायु की मृत्यु की बात उसे पता चला वह ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसने वानर सेना को बताया की वो जटायु का भाई है और यह भी बताया की उसने और जटायु ने मिलकर स्वर्ग में जाकर इंद्र को भी युद्ध में हराया था। उसने यह भी बताया की सूर्य की तेज़ किरणों से जटायु की रक्षा करते समय उसके सभी पंख भी जल गए और वह उस पर्वत पर गिर गया।सम्पाती ने वानरों से बताया कि वह बहुत ज्यादा जगहों पर जा चूका है और उसने यह भी बताया की लंका का असुर राजा रावण ने सीता को अपहरण किया है और उसी दक्षिणी समुद्र के दूसरी ओर उसका राज्य है।पढ़ें: हनुमान जयंती पर निबंधलंका की ओर हनुमान की समुद्र यात्रा Hanuman Lanka Journeyजामवंत ने हनुमान के सभी शक्तियों को ध्यान दिलाते हुए कहा की हे हनुमान आप तो महा ज्ञानी, वानरों के स्वामी और पवन पुत्र हैं। यह सुन कर हनुमान का मन हर्षित हो गया और वे समुंद्र तट किनारे स्तिथ सभी लोगों से बोले आप सभी कंद मूल खाकर यही मेरा इंतज़ार करें जब तक में सीता माता को देखकर वापस ना लौट आऊं। ऐसा कहकर वे समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए लंका की ओर चले गए।रास्ते में जाते समय उन्हें सबसे पहले मेनका पर्वत आये। उन्होंने हनुमान जी से कुछ देर आराम करने के लिए कहा पर हनुमान ने उत्तर दिया – जब तक में श्री राम जी का कार्य पूर्ण ना कर लूं मेरे जीवन में विश्राम की कोई जगह नहीं है और वे उड़ाते हुए आगे चले गए।देवताओं ने हनुमान की परीक्षा लेने के लिए सापों की माता सुरसा को भेजा। सुरसा ने हनुमान को खाने की कोशिश की पर हनुमान को वो खा ना सकी। हनुमान उसके मुख में जा कर दोबारा निकल आये और आगे चले गए।और पढ़ें - व्हाट्सएप्प की प्रेरणादायक कहानी WhatsApp Success Story in Hindiसमुंद्र में एक छाया को पकड़ कर खा लेने वाली राक्षसी रहती थी। उसने हनुमान को पकड़ लिया पर हनुमान ने उसे भी मार दिया।हनुमान लंका दहन की कहानी Hanuman Lanka Dahan Storyसमुद्र तट पर पहुँचने के बाद हनुमान एक पर्वत के ऊपर चढ़ गए और वहां से उन्होंने लंका की और देखा। लंका का राज्य उन्हें दिखा जिसके सामने एक बड़ा द्वार था और पूरा लंका सोने का बना हुआ था।हनुमान ने एक छोटे मछर के आकार जितना रूप धारण किया और वो द्वार से अन्दर जाने लगे। उसी द्वार पर लंकिनी नामक राक्षसी रहती थी। उसने हनुमान का रास्ता रोका तो हनुमान ने एक ज़ोर का घूँसा दिया तो निचे जा कर गिरी। उसने डर के मारे हनुमान को हाथ जोड़ा और लंका के भीतर जाने दिया।हनुमान ने माता सीता को महल के हर जगह ढूँढा पर वह उन्हें नहीं मिली। थोड़ी दे बाद ढूँढने के बाद उन्हें एक ऐसा महल दिखाई दिया जिसमें एक छोटा सा मंदिर था एक तुलसी का पौधा भी। हनुमान जी को यह देखकर अचंभे में पड गए औए उन्हें यह जानने की इच्छा हुई की आखिर ऐसा कौन है जो इन असुरों के बिच श्री राम का भक्त है।यह जानने के लिए हनुमान ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और उन्हें पुकारा। विभीषण अपने महल से बाहर निकले और जब उन्होंने हनुमान को देखा तो वो बोले – हे महापुरुष आपको देख कर मेरे मन में अत्यंत सुख मिल रहा है, क्या आप स्वयं श्री राम हैं?हनुमान ने पुछा आप कौन हैं? विभीषण ने उत्तर दिया – मैं रावण का भाई विभीषण हूँ।यह सुन कर हनुमान अपने असली रूप में आगए और श्री रामचन्द्र जी के विषय में सभी बातें उन्हें बताया। विभीषण ने निवेदन किया- हे पवनपुत्र मुझे एक बार श्री राम से मिलवा दो। हनुमान ने उत्तर दिया – मैं श्री राम जी से ज़रूर मिलवा दूंगा परन्तु पहले मुझे यह बताये की मैं जानकी माता से कैसे मिल सकता हूँ?5. सुंदरकांड Sundar Kanda of Ramayan Story in Hindiअशोक वाटिका में हनुमान सीता भेट Hanuman meet Mata Sita at Ashok Vatikaविभीषण ने हनुमान को बताया की रावण ने सीता माता को अशोक वाटिका में कैद करके रखा है। यह जानने के बाद हनुमान जी ने एक छोटा सा रूप धारण किया और वह अशोक वाटिका पहुंचे। वहां पहुँचने के बाद उन्होंने देखा की रावण अपने दसियों के साथ उसी समय अशोक वाटिका में में पहुंचा और सीता माता को अपने ओर देखने के लिए साम दाम दंड भेद का उपयोग किया पर तब भी सीता जी ने एक बार भी उसकी ओर नहीं देखा। रावण ने सभी राक्षसियों को सीता को डराने के लिए कहा।पर त्रिजटा नामक एक राक्षसी ने माता सीता की बहुत मदद और देखभाल की और अन्य राक्षसियों को भी डराया जिससे अन्य सभी राक्षसी भी सीता की देखभाल करने लगे।कुछ देर बाद हनुमान ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी। श्री राम नामसे अंकित अंगूठी देख कर सीता माता के आँखों से ख़ुशी के अंशु निकल पड़े। परन्तु सीता माता को संदेह हुआ की कहीं यह रावण की कोई चाल तो नहीं।तब सीता माता ने पुकारा की कौन है जो यह अंगूठी ले कर आया है। उसके बाद हनुमान जी प्रकट हुए पर हनुमान जी को देखकर भी सीता माता को विश्वस नहीं हुआ।सके बाद हनुमान जी ने मधुर वचनों के साथ रामचन्द्र के गुणों का वर्णन किया और बताया की वो श्री राम जी के दूत हैं। सीता ने व्याकुलता से श्री राम जी का हाल चाल पुछा। हनुमान जी ने उत्तर दिया – हे माते श्री राम जी ठीक हैं और वे आपको बहुत याद करते हैं। वे बहुत जल्द ही आपको लेने आयेंगे और में शीघ्र ही आपका सन्देश श्री राम जी के पास पहुंचा दूंगा।तभी हनुमान ने सीता माता से श्री राम जी को दिखने के लिए चिन्ह माँगा तो माता सीता ने हनुमान को अपने कंगन उतार कर दे दिए।हनुमान लंका दहन Hanuman Lanka Dahanहनुमान जी को बहुत भूख लग रहा था तो हनुमान अशोक वाटिका में लगे पेड़ों के फलों को खाने लगे। फलों को खाने के साथ-साथ हनुमान उन पेड़ों को तोड़ने लगे तभी रावण के सैनिकों ने हनुमान पर प्रहार किया पर हनुमान ने सबको मार डाला।जब रावण को इस बात का परा चला की कोई बन्दर अशोक वाटिका में उत्पात मचा रहा है तो उसने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा हनुमान का वध करने के लिए। पर हनुमान जी ने उसे क्षण भर में ऊपर पहुंचा दिया।कुछ देर बाद जब रावण को जब अपने पुत्र की मृत्यु का पता चला वह बहुत ज्यादा क्रोधित हुआ। उसके बाद रावण ने अपने जेष्ट पुत्र मेघनाद को भेजा। हनुमान के साथ मेघनाद का बहुत ज्यादा युद्ध हुआ परकुछ ना कर पाने के बाद मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। ब्रह्मास्त्र का सम्मान करते हुए हनुमान स्वयं बंधग बन गए।हनुमान को रावण की सभा में लाया गया। रावण हनुमान को देख कर हंसा और फिर क्रोधित हो कर उसने प्रश्न किया – रे वानर, तूने किस कारण अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया? तूने किस कारण से मेरे सैनिकों और पुत्र का वध कर दिया क्या तुझे अपने प्राण जाने का डर नहीं है?यह सुन कर हनुमान ने कहा – हे रावण, जिसने महान शिव धनुष को पल भर में तोड़ डाला, जिसने खर, दूषण, त्रिशिरा और बाली को मार गिराया, जिसकी प्रिय पत्नीका तुमने अपहरण किया, मैं उन्ही का दूत हूँ।मुजे भूख लग रहा था इसलिए मैंने फल खाए और तुम्हारे राक्षसों ने मुझे खाने नहीं दिया इसलिए मैंने उन्हें मार डाला। अभी भी समय है सीता माता को श्री राम को सौंप दो और क्षमा मांग लो।रावण हनुमान की बता सुन कर हसने लगा और बोला – रे दुष्ट, तेरी मृत्यु तेरे सिर पर है। ऐसा कह कर रावण ने अपने मंत्रियों को हनुमान को मार डालने का आदेश दिया। यह सुन कर सभी मंत्री हनुमान को मारने दौड़े। तभी विभीषण वहां आ पहुंचे और बोले- रुको, दूत को मारना सही नहीं होगा यह निति के विरुद्ध है। कोई और भयानक दंड देना चाहिए।सभी ने कहा बन्दर का पूंछ उसको सबसे प्यारा होता है क्यों ना तेल में कपडा डूबा कर इसकी पूंछ में बंध कर आग लगा दिया जाये। हनुमान की पूंछ पर तेल वाला कपडा बंध कर आग लगा दिया गया। जैसे ही पूंछ में आग लगी हनुमान जी बंधन मुक्त हो कर एक छत से दुसरे में कूदते गए और पूरी सोने की लंका में आग लगा के समुद्र की और चले गए और वहां अपनी पूंछ पर लगी आग को बुझा दिया।और पढ़ें - अल्बर्ट आइंस्टीन की जीवनी Albert Einstein Biography in Hindiवहां से सीधे हनुमान जी श्री राम के पास लौटे और वहां उन्होंने श्री राम को सीता माता के विषय में बताया और उनके कंगन भी दिखाए। सीता माता के निशानी को देख कर श्री राम भौवुक हो गए।प्रभु राम सेतु बंध God Ram Setu Floating Stonesअब श्री राम और वानर सेना की चिंता का विषय था कैसे पूरी सेना समुद्र के दुसरे और जा सकेंगे। श्री राम जी ने समुद्र से निवेदन किया की वे रास्ता दें ताकि उनकी सेना समुद्र पार कर सके। परन्तु कई बार कहने पर भी समुद्र ने उनकी बात नहीं मानी तब राम ने लक्ष्मण से धनुष माँगा और अग्नि बाण को समुद्र पर साधा जिससे की पानी सुख जाये और वे आगे बढ़ सकें।जैसे ही श्री राम ने ऐसा किया समुद्र देव डरते हुए प्रकट हुए और श्री राम से माफ़ी मांगी और कहा हे नाथ, ऐसा ना करें आपके इस बाण से मेरे में रहते वाले सभी मछलियाँ और जीवित प्राणी का अंत हो जायेगा। श्री राम ने कहा – हे समुद्र देव हमें यह बताएं की मेरी यह विशाल सेना इस समुद्र को कैसे पार कर सकते हैं।समुद्र देव ने उत्तर दिया – हे रघुनन्दन राम आपकी सेना में दो वानर हैं नल और नील उनके स्पर्श करके किसी भी बड़े से बड़े चीज को पानी में तैरा सकते हैं। यह कह कर समुद्र देव चले गए।http://vnita26.blogspot.com/2021/05/by-12-2021-no-comments-contents-hide-1.htmlउनकी सलाह के अनुसार नल और नील ने पत्थर पर श्री राम के नाम लिख कर समुद्र में फैंक के देखा तो पत्थर तैरने लगा। उसके बाद एक के बाद एक करके नल नील समुद्र में पत्थर को समुद्र में फेंकते रहे और समुद्र के अगले छोर तक पहुच गए।6. लंका कांड Lanka Kanda Story of Ramayan in Hindiलंका में श्री राम की वानर सेना Sri Rama Monkey Army at Lankaश्री राम ने अपनी सेना के साथ समुद्र किनारे डेरा डाला। जब इस बात का पता रावण की पत्नी मंदोदरी को पता चला तो वो घबरा गयी और उसने रावण को बहुत समझाया पर वह नहीं समझा और सभा में चले गया।रावण के भाई विभीषण ने भी रावण को सभा में समझाया और सीता माता को समान्पुर्वक श्री राम को सौंप देने के लिए कहा परन्तु यह सुन कर रावण क्रोधित हो गया और अपने ही भाई को लात मार दिया जिसके कारण विभीषण सीढियों से नीचे आ गिरे। विभीषण ने अपना राज्य छोड़ दिया और वो श्री राम के पास गए। राम ने भी ख़ुशी के साथ उन्हें स्वीकार किया और अपने डेरे में रहने की जगह दी। आखरी बार श्री राम ने बाली पुत्र अंगद कुमार को भेजा पर रावण तब भी नहीं माना।युद्ध आरंभ हुआ The War Beginsश्री राम और रावण की सेना के बिच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में लक्ष्मण पर मेघनाद ने शक्ति बांण से प्रहार किया था जिसके कारण हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत गए। परन्तु वे उस पौधे को पहेचन ना सके इसलिए वे पूरा हिमालय पर्वत ही उठा लाये थे। यहाँ तक की रावण के भाई कुंभकरण जैसे महारथी असुर को भी भगवान राम ने अपने बांण से मार डाला।इस युद्ध में रावण की सेना के श्री राम की सेना प्रसत कर देती है और अंत में श्री राम रावण के नाभि में बाण मार कर उसे मार देते हैं और सीता माता को छुड़ा लाते हैं। श्री राम विभीषण को लंका का राजा बनाते देते हैं। परन्तु राम माता सीता से मिलने से पूर्व उनकी अग्नि परीक्षा लेते हैं। उसके बाद श्री राम, सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य 14 वर्ष के वनवास से लौटते हैं।7. उत्तरकांड Uttar Kanda of Ramayan in Hindiउसके बाद श्री राम को अयोध्या का राजा घोषित किया गया और उनका जीवन खुशियों से बीत रहा था। कुछ समय बाद माता सीता गर्भवती हो जाती हैं। परन्तु जब राम लोगों के मुख से अग्नि परीक्षा के विषय में सुनते हैं वह माता सीता को अयोध्या छोड़ कर चले जाने को कहते हैं। माता सीता को इस बात से बहुत दुःख होता है। महर्षि वाल्मीकि उन्हें अपने आश्रम में आश्रय देते हैं।8. लव-कुश कांड Luv Kush Kanda Ramayan Story in Hindiलव-कुश का जन्म Birth of Luv and Kushवही माता सीता दो पुत्रों को जन्म देती हैं जिनका नाम लव और कुश दिया गया। लव और कुश ने महर्षी वाल्मीकि से पूर्ण रामायण का ज्ञान लिया। वे दोनों बालक पराक्रमी और ज्ञानी थे।अश्वमेध यज्ञ Ashvamedha Yagyaश्री राम ने चक्रवर्ती सम्राट बनने और अपने पापों से मुक्त होने के लिए अस्वमेध यज्ञ किया। यह यज्ञ करने का सुझाव उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने दिया था। इस यज्ञ में एक घोड़े को स्वछन्द रूप से छोड़ा जाता था। वह घोडा जितना ज्यादा क्षेत्र तक जाता था उसे राज्ये में सम्मिलित कर दिया जाता था। इस यज्ञ को पत्नी के बिना नहीं हो सकता था इसलिए श्री राम ने माता सीता का स्वर्ण मूर्ति भी बनवाया था।जब श्री राम का घोडा स्वछन्द रूप से छोड़ा गया तब वह भी एक राज्य से दुसरे राज्य में गया। जब वह घोडा महर्षि वाल्मीकि के अस्राम के पास पहुंचा तो लव कुश ने उसकी सुन्दरता देखकर उसे पकड़ लिया। जब राम को पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा परन्तु लव-कुश से युद्ध में सब हार गए। जब राम वहां पहुंचे तो उन्होंने उन बालकों से पुछा की वह किसके पुत्र हैं। तब लव-कुश ने माता-सीता का नाम लिया।जब राम ने यह सुना तो तू उन्होंने बताया की वह उनके पिता हैं। यह सुन कर लव-कुश भी बहुत कुश हुए और राम से गले मिल गए। उसके बाद वे माता सीता से आश्रम जा कर मिले। उसके बाद श्री राम, माता सिट और लव-कुश को लेकर अयोध्या लौट आये।Bal Vnita mahila ashramआशा करते हैं आपको रामायण की यह कथा संक्षिप्त रूप में आपको अच्छा लगा होगा।